मेरी दीवानगी थे तुम, मेरी आवारगी थे तुम।
बनाया मुझे शायर, और मेरी शायरी थे तुम।
तुम थे तो हम थे, सच कहे तो मेरी जिंदगी थे तुम।
"नमस्कार दोस्तों मेरा नाम आशीष कुमार है। दोस्तों पढ़ाई के साथ- साथ मुझें कविताएँ और लेख लिखने का भी बहुत शौक है, जिसकी वजह से आये दिन मैं अक्सर नयी- नयी कविताएँ और लेख लिखता रहता हूँ।"
दोस्तों हम अपने पूरे जीवन में कई लोगों से मिलते हैं। कुछ हमें अच्छे लगते हैं तो कुछ को हम पहली नजर में खारिज कर देते हैं। संपर्क में आने वाले कुछ लोगों से बार-बार मिलने और बात करने की इच्छा होती है और यही आकर्षण दोस्ती या प्रेम की मजबूत गाँठ बन जाता है। और उन्हें अपने दिल की बात बताने का भी मन करता है और उनके दिल की बात सुनने की भी इच्छा होती है।
दोस्तों खून के रिश्तों या पारिवारिक रिश्तों के अलावा जो रिश्ते दिल के रास्ते पर बँधते हैं, उनका सबसे जरूरी तत्व है, भावनात्मक रूप से उसकी गर्माहट को हमेशा महसूस किया जाना। क्योंकि रिश्तों के बीच की गर्माहट जब भी ठंडी होने लगती है, जुड़ाव के धागे चटकने लगते हैं और एक दिन ऐसे रिश्ते हमेशा के लिए समाप्त होकर दिल के किसी कोने में सिर्फ याद बनकर रह जाते हैं। हर किसी के जीवन में ऐसी यादों की कमी नहीं होती, जब वे पीछे छूटे जीवन के किसी मोड़ पर अपने रिश्तों को छोड़ आए हों।
मेरे प्रिय मित्रों इन्हीं सब रिश्तों के अहमियत को देख कर मैंने अपने किसी खास के लिए ये कविता लिखी है जो की मेरी ज़िन्दगी से बहुत दूर कहीं चला गया है और अब मेरे पास बस उसकी यादों के अलावा और कुछ भी नही बचा है।
अगर वो शक्स मेरी ज़िन्दगी में नही आया होता तो शायद आज मैं ये नही कर पाता।
मेरी आज की कविता का शीर्षक है "तुम"।
दोस्तों मुझे उम्मीद है कि मेरी आज की ये कविता आप लोगों को बेहद ही पसंद आयेगी और अगर आप मेरी इस कविता को दिल से पढ़ेंगे तो मेरी भावनाओं को अवश्य ही समझ पाएंगे।
शीर्षक :- "तुम"
यूँ तो चल देता हूँ मैं अकेले ही,
अपनी गुमनाम सी दुनिया में।
पर उस गुमनाम सी दुनिया की
पहचान हो तुम।
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सोचा था मिटा दूँगा हर एक निशानी,
भूल जाऊँगा अपनी बीती हुई कहानी।
पर उस ना भूल पाने वाली कहानी की
शुरुआत हो तुम।
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खोने लगा था मैं भी इस भीड़ में कहीं,
अपनो के ही बनाये घेरो में।
पर उस भीड़ से अलग कही गयी,
एक आवाज हो तुम।
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तुमने तोड़ दिया रिश्ता अपना चंद पलो में,
चाहता तो मैं भी हूँ कि तुम्हें भूल जाऊँ।
पर उस साथ बिताए हर एक लम्हें की
एहसास हो तुम।
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सोचता हूँ जला दूँ तुम्हारी सारी यादें,
और छोड़ दूँ तुम्हें अपने शब्दों में लिखना।
पर मेरे लिखे जाने वाले हर एक शब्दों के
अल्फाज हो तुम।
लेखक --------- आशीष कुमार

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